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राजस्थानी चित्रकला के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य Rajasthani painting some important facts


आधुनिक काल में राजस्थानी चित्रकला के नमूने जयपुर म्यूजियम में भित्ति चित्रों के रूप में उपलब्ध है।
जर्मन चित्रकार मूलर ने 1920-1945 ई. तक जोधपुर, बीकानेर और जयपुर में रहकर यथार्थवादी पद्धति के चित्र बनाये।
भित्ति तैयार करने के लिए राहोली का चूना अरायशी चित्रण के लिए सर्वोतम माना जाता है।
जहाँगीर के समय अरायशी पद्धति ईटली से भारत लाई गई।

चित्रकला के विकास के लिए संस्थाए

जोधपुर
चितेरा
धोरां


जयपुर
आयाम
पैग
कलावृत
क्रिएटिव आर्टिस्ट ग्रुप
उदयपुर
तूलिका कलाकार परिषद


कुन्दरलाल मिस्त्री

इन्हें राजस्थान में आधुनिक चित्रकला को प्रारंभ करने का श्रेय दिया जाता है।

रामगोपाल विजयवर्गीय

सवाईमाधोपुर जिले के बालेर गाँव में 1905 ई. में जन्म।
एकल चित्र प्रदर्शनी की परम्परा को प्रारंभ करने का श्रेय।
इनके नाम पर ही विजयवर्गीय शैली का जन्म हुआ।
इनकी अनूठी रचना चित्र गीतिका है।
हाल ही में इनकी 77 कविताओं के काव्य संग्रह बोर्धांजली का विमोचन किया गया।
यह राजस्थान के प्रथम चित्रकार है जिन्हें यह सम्मान दिया गया।

स्व. भूरसिंह शेखावत

धोंधलिया (बीकानेर) में 1914 में जन्मे प्रसिद्ध चित्रकार।
देशभक्तों व शहीदों का चित्रण किया।

बी.जी. शर्मा

विश्व प्रसिद्ध सहेलियों की बाड़ी के पास इन्होने बी.जी. शर्मा चित्रालय 13 अप्रैल 1993 को प्रारंभ किया।

देवकी नन्दन शर्मा

अलवर निवासी, भित्ति व पशु-पक्षी चित्रण के लिए प्रसिद्ध
ये Master Of Nature and Living Object के नाम से प्रसिद्ध।

गोवर्धनलाल (बाबा)

कांकरोली (राजसमन्द) में जन्मे
भीलों के चित्तेरे के उपनाम से प्रसिद्ध
बारात इनके द्वारा बनाया गया प्रमुख चित्र है।

जगमोहन माथोड़ीया

श्वान विषय पर सर्वाधिक चित्र बनाने के कारण इनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में शामिल किया गया।

रवि वर्मा

केरल के चित्रकार
भारतीय चित्रकला के पितामह कहलाते है।

सौभागमल गहलोत

जयपुर के प्रसिद्ध चित्रकार
इन्हें नीड़ का चित्तेरा कहा जाता है।

हमीदुल्ला

जयपुर में जन्मे प्रसिद्ध रंग कर्मी
हर बार, उत्तर-उर्वशी व उलझी आकृतियाँ इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ है।

अराशिया

फ्रेस्को तकनीक पर आधारित चित्रों को कहा जाता है।
फ्रेस्को बुनो ताजा प्लास्टर की हुई भित्ति पर किया गया चित्रांकन जिसे आलागीला, आरायशा व शेखावटी में पणा भी कहा जाता है।
यह भित्ति चित्र शैली ईटली से भारत लाई गयी व राजस्थान में सर्वप्रथम जयपुर में इस पद्धति का प्रारंभ हुआ।

शेखावटी क्षेत्र

यह क्षेत्र राजस्थान की ओपन एयर आर्ट गैलेरी के लिए प्रसिद्ध है।
इस क्षेत्र की हवेलियाँ Fresco Paintings के लिए प्रसिद्ध है।
शेखावटी के भित्ति चित्रों में लोक जीवन की झांकी सर्वाधिक देखने को मिलती है।

पुष्पदत्त

आमेर शैली के प्रमुख चित्रकार

पंडित द्वारका प्रसाद शर्मा

राजस्थान के प्रसिद्ध कलाकार तथा गुरूजी के नाम से प्रसिद्ध    

फूलचंद वर्मा

राज्य के प्रसिद्ध कलाकार, नारायना (जयपुर) के निवासी
इन्होने प्रकृति व राजस्थान की लघुचित्र शैली को ही अपने चित्रांकन का आधार बनाया।
बतखों की मुद्राएँ शीर्षक कृति पर राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा इन्हें 1972 में सम्मानित किया गया।
टैम्परा – इन्होने इस पद्धति का उपयोग किया।

ज्योति स्वरूप शर्मा

जोधपुर निवासी, ऊँट की खाल पर चित्रांकन (उस्ता कला) करने के कुशल कारीगर
ये चमड़े पर चित्रांकन करने में मारवाड़ी व मुग़ल दोनों शैलीयों में माहिर है।
इनका मुख चित्र श्रृंखला है
इन्होने रेणुका आर्ट हस्तशिल्प शोध संस्थान की स्थापना की।
इनके द्वारा 26 इंच की ढाल पर जो चित्रकारी की गयी है वह निःसंदेह कलाकार की भावना और साधना का जीवन साक्ष्य है।
सम्पूर्ण ढाल मुग़ल शैली में चित्रित है।
इस ढाल पर आठ मुग़ल बादशाहों के चित्रों के अलावा शाहजहाँ की याद में लिखा कलमा है।
हजरत मोहम्मद साहब की तारीफ में शेर-शायरी है
कुरान शरीफ की आयते है।
इनके द्वारा सारा काम अरेबिक केलिग्राफी (हस्तलेख कला) में किया गया है।

जोतदान

चित्रों का संग्रह कहलाता है।
देवगढ़ में चोखा व बगता नामक दो प्रसिद्ध कलाकार हुए है।
अमेरिका में इन चित्रों पर शोध कार्य हुआ है।
इन चित्रों को देवगढ़ शैली का बताया गया।

सुरजीत कौर चोयल

यह हिन्दुस्तान की पहली चित्रकार है जिसने जापान की प्रसिद्ध कला दीर्घा में बनाया है।
इन चित्रों को ‘फुकोका संग्रालय’ में रखना उपयुक्त समझा है।

चित्तेरा

फड़ चित्रित करने का कार्य भीलवाड़ा व चित्तोडगढ़ के जोशी परिवार का है उन्हें ही चित्तेरा कहा जाता है।
चित्तेरा जोधपुर में स्थित चित्रकला विकास हेतु प्रयासरत संस्था भी है।

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