पाबूजी की घोड़ी –
केसर कालमी (यह काले रंग की घोड़ी देवल चारणी ने दी, जो जायल, नागौर के काछेला चारण
की पत्नी थी
सन् 1276 ई. में
जोधपुर के देचू गाँव में देवल चारणी की गायों को जींदराव खींची से छुड़ाते हुए
पाबूजी वीरगति को प्राप्त हुए, पाबूजी की पत्नी उनके वस्त्रों के साथ सती हुई तथा
इस युद्ध में पाबूजी के भाई बुड़ोजी भी शहीद हुए
पाबूजी के भतीजे
व बुड़ोजीके पुत्र रूपनाथ जी ने जींद राव खींची को मारकर अपने पिता व चाचा की
मृत्यु का बदला लिया।रूपनाथ जी को भी लोकदेवता के रूप में पूजते है। राजस्थान में
रूपनाथ जी के प्रमुख मन्दिर कोलुमण्ड(फलौदी, जोधपुर) तथा सिम्भूदड़ा (नोखा मंडी,
बीकानेर) में है। हिमाचल प्रदेश में रूपनाथ जी को बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है।
पाबूजी की फड़
नायक जाती के भील भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते है।
फड़ / पड़ –
किसी भी महत्वपूर्ण घटना या महापुरुष की जीवनी का कपड़े पर चित्रात्मक अंकन ही फड़
या पड़ कहलाता है। फड़ का वाचन केवल रात्रि में होता है। फड़ वाचन के समय भोपा वाद्य
यंत्र के साथ फड़ बाँचता है तथा भोपी सम्बंधित प्रसंग वाले चित्र को लालटेन की
सहायता से दर्शकों को दिखाती है तथा साथ में नृत्य भी करती रहती है।
राजस्थान में फड़
निर्माण का प्रमुख केंद्र शाहपुरा (भीलवाडा) में है। वहाँ का जोशी परिवार फड़
चित्रकारी में सिद्धहस्त है। शांतिलाल जोशी व श्रीलाल जोशी प्रसिद्ध फड़ चित्रकार
हुए है। यह जोशी परिवार वर्तमान में ‘द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका’ तथा
‘कलिंग विजय के बाद अशोक’ विषय पर फड़ बना रहा है।
सर्वाधिक फड़े तथा
सर्वाधिक प्रसिद्ध फड़ पाबूजी की फड़ है।
सबसे प्राचीन फड़,
सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
भारत सरकार ने
सर्वप्रथम जिस फड़ का डाक टिकट जारी किया था वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992
को 5 रु का टिकट) है।
देवनारायण जी की
फड़ गुर्जर जाती के कुँवारे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते है।
भैंसासुर की फड़
का बाँचन नहीं होता, इसकी केवल पूजा (कंजर जाती के द्वारा) होती है।
रामदला व कृष्ण
दला की फड़ (पूर्वी राजस्थान में) एक मात्र एसी फड़ है जिसका वाचन दिन में होता है।
हाल ही में जोशी
परिवार द्वारा बनाई गई अमिताभ बच्चन की फड़ को बाँच कर मारवाड़ का भोपा रामलाल व
भोपी पताशी प्रसिद्ध हुए।
मारवाड़ में सांडे
(ऊंट) लेन का श्रेय पाबूजी को जाता है।
पाबूजी ‘ऊँटों का
देवता’, ‘गोरक्षक देवता’ तथा प्लेग रक्षक देवता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
पाबूजी को ‘लक्ष्मण
का अवतार’ माना जाता है।
ऊँटों को पालक
जाती राईका / रेबारी /देवासी के अराध्य देव पाबूजी है।
पाबूजी की जीवनी ‘पाबू
प्रकाश’ के रचयिता – आशिया मोड़जी
हरमल व चांदा
डेमा पाबूजी के रक्षक थे।
माघ शुक्ल दशमी
तथा भाद्रपद शुक्ल दशमी को कोलुमण्ड गाँव (फलौदी, जोधपुर) में पाबूजी का
प्रसिद्ध मेला भरता है।
पाबूजी के पवाड़ें
/ पावड़े (गाथा गीत) प्रसिद्ध है, जो माठे वाद्य यंत्र के साथ गाये जाते है।
प्रतीक चिन्ह
– भाला लिए हुए अश्वारोही तथा बायीं ओर झुकी हुई पाग।
DF
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteपाग झुकी होने का क्या कारण है प्ल्ज़ अवगत करवाये
ReplyDeleteकई पुस्तक और इन्टरनेट पर पाबूजी का मेला चेत्र अमावस्या को भरता है लेकिन आपके तो माघ शुक्ल दशमी और भाद्रपद शुक्ल दशमी को भरना बताया है
ReplyDeletegood information sir
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