रामसा पीर,
रुणेचा रा धणी व पीरां रा पीर नाम से प्रसिद्ध है
रामदेवजी को
कृष्ण का व उनके बड़े भाई बीरम देव को बलराम का अवतार माना जाता है।
पिता – अजमल जी
तंवर
माता – मेणादे
पत्नी – नेतलदे (नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढा की
पुत्री थी)
लोकमान्यता के
अनुसार रामदेव जी का जन्म उंडूकाश्मीर गाँव (शिव तहसील, बाड़मेर) में भाद्रपद शुक्ल
द्वितीय को हुआ था।
समाधी –
रुणेचा(जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन ली
रामदेवजी के
समाधि स्थल पर उनसे पहले उनकी मुहबोली बहन डाली बाई ने समाधि ली थी।
रामदेव जी की दो
सगी बहने थी – लाछा बाई व सुगना बाई
मक्का से आये
पीरों के कहा “हम तो केवल पीर है आप तो पीरों के भी पीर है।”
उनका प्रमुख
शिष्य – हरजी भाटी व आईमाता
गुरु का नाम –
बालीनाथ जिनका मंदिर मसूरिया, जोधपुर में है।
रामदेवजी ने भैरव
राक्षस का वध सातलमेर, पोकरण में किया।
रामदेव जी की
पंचरंगी ध्वजा – नेजा
रामदेवजी के
तीर्थ यात्री – जातरू
रामदेवजी के
मेघवाल भक्त – रिखियां
जम्मा – रामदेवजी
की आराधना में श्रद्धालु लोग रिखियां से जम्मा रात्रि जागरण करते है
कुष्ठ व हैजा रोग
निवारक देवता।
सवारी – लीला(हरा)
घोड़ा
रामदेवजी ने कामड़
पंथ की स्थापना की।
राजस्थान में
कामड़ पंथियों का प्रमुख स्थान पादरला गाँव (पाली) है तथा इसके अलावा पोकरण (जैसलमेर)
व डीडवाना (नागौर) में भी कामड़ पंथी निवास करते है।
तेरहताली नृत्य -
रामदेवजी की आराधना में कामड़ जाति की महिलाये मंजीरे के साथ
तेरहताली नृत्य करती है
यह बैठकर किया
जाने वाला एक मात्र लोक नृत्य है।
तेरहताली नृत्य
के समय कामड़ जाति का पुरुष तन्दुरा (चौतारा) वाद्य यंत्र बजाता है। इस नृत्य को
करते समय नृत्यांगना तेरह मंजीरे (9 दाहिने पांव पर, 2 कोहनी पर व 2 हाथ में) के
साथ तेरह ताल उत्पन्न करते हुए तेरह स्थितियों में नृत्य करती है।\
यह एक व्यवसायिक
या पेशेवर नृत्य भी है।
प्रसिद्ध
तेरहताली नृत्यांगना – मांगीबाई, दुर्गाबाई।
रामदेव जी की फड़
कामड़ जाति के भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बांचते है।
प्रतिवर्ष
भाद्रपद शुक्ल द्वितीय को बाबा रामदेवजी का रामदेवरा (जैसलमेर) में भव्य मेला भरता
है। पश्चिमी राजस्थान का यह सबसे बड़ा साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए पसिद्ध मेला है।
रामदेवजी का
प्रतीक चिन्ह – पगल्याँ (पत्थर पर उत्कीर्ण रामदेवजी के प्रतीक के रूप में दो पैर)
रामदेवजी एकमात्र
ऐसे देवता जो कवि थे, “चौबीस बाणीयाँ” रामदेवजी की प्रसिद्ध रचना है।
रामदेवरा में
स्थित रामदेवजी के मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
रामदेवजी के पूजा
स्थल – रामदेवरा/रुणेचा (जैसलमेर), मसूरिया (जोधपुर), बिराठिया (पाली), बिठुजा
(बालोतरा, बाड़मेर), सुरताखेड़ा (चित्तोडगढ़), छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)।
nice information sir
ReplyDelete