मारवाड़ के पंच पीरों के अलावा अन्य लोक देवता (RAJASTHAN KE LOK DEVTA)
तेजाजी
:
- जन्म – 1074 ई. खड़नाल/खरनाल (नागौर) में, माघ शुक्ल चतुदर्शी को
- तेजाजी नाग वंशीय जाट थे।
- पिता – ताहड़ जी जाट, माता – राजकुंवरी/रामकुंवरी, पत्नी – पेमलदे (पनेर के रायचन्द्र की पुत्री)
- तेजाजी ने लाछा गुर्जरी की गायों को मेर( वर्तमान आमेर) के मीणाओं से छुड़ाया था।
- सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में जीभ पर साँप काटने से तेजाजी की मृत्यु हो गयी।
- घोड़ी – लीलण
- तेजाजी की मृत्यु की सुचना उनकी घोड़ी ने घर आकर दी।
- तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते है।
- काला और बाला के देवता, कृषि कार्यो के उपकारक देवता, गौरक्षक देवता के रूप में भी पूजनीय।
- अजमेर व नागौर में विशेष पूजनीय।
- तेजाजी की याद में प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है।
- सेंदरिया, ब्यावर, भावतां सुरसरा (अजमेर) व खरनाल (नागौर) में तेजाजी के प्रमुख पूजा स्थल है।
- साँप काटने पर तेजाजी के भोपे चबूतरे पर पीड़ित व्यक्तियों को ले जाकर गौ मूत्र से कुल्ला कराके तथा दांतों में गोबर की राख दबाकर साँप काटे हुए स्थान से जहर चूसना प्रारंभ करता है।
देवनारायण जी :
- जन्म – 1243 ई., वास्तविक नाम – उदयसिंह
- बगड़ावत परिवार में जन्म
- इनके अनुयायी गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु का अवतार मानते है।
- पिता – सवाईभोज
- माता – साढू देवी
- पत्नी – पीपलदे
- घोड़ा – लीलागर
- देवनारायण जी के जन्म से पूर्व ही उनके पिता सवाईभोज भिनाय के शासक से युद्ध करते हुए अपने 23 भाइयों सहित शहीद हो गये। बाद में देवनारायण जी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया व लम्बी लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी गाथा ‘बगड़ावत महाभारत’ के रूप में प्रसिद्ध है।
- देवजी की फड़ – गुर्जर जाति के कुंवारे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बांचते है।
- 1 मंतर = 1 जंतर, जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना जाता है।
- सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
- भारत सरकार ने राजस्थान की जिस फड़ पर डाक टिकट जारी किया वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट) है।
- गुर्जरों का तीर्थ स्थल – सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द (भीलवाड़ा)
- जोधपुरिया (टोंक) में देवजी का प्रमुख पूजा स्थल
देव बाबा :
- नगला जहाज गाँव (भरतपुर) में मंदिर
- भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को मेला भरता है।
- इनकी याद में चरवाहों को भोज करवाया जाता है।
वीर कल्लाजी
राठौड़ :
- जन्म – विक्रम संवत् 1601 में
- जन्म स्थल – मेड़ता (नागौर)
- पिता – राव अचलाजी
- दादा – आससिंह
- कल्ला जी मीराबाई के भतीजे थे।
- 1567 ई. में अकबर के विरुद्ध तथा उदयसिंह के पक्ष में युद्ध करते हुए जयमल राठौड़ तथा पत्ता सिसोदिया सहित वीर कल्लाजी भी शहीद हुए। युद्ध भूमि में चतुर्भुज के रूप में वीरता दिखाए जाने के कारण इनकी ख्याति चार हाथों वाले लोकदेवता के रूप में हुई।
- कल्लाजी के सिद्ध पीठ को “रनेला” कहते है।
- कल्लाजी के गुरु भैरवनाथ थे।
- चित्तोडगढ़ किले में भैरवपोल के पास कल्लाजी की छतरी बनी हुई है।
- कल्लाजी शेषनाग के अवतार के रूप में पूजनीय है।
- कल्ला जी के थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का इलाज होता है।
भूरिया बाबा
(बाबा गौमतेश्वर) :
- मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा की झूठी कसम नहीं खाते।
- दक्षिण राजस्थान के गौड़वाड़ क्षेत्र में इनके मंदिर है।
मल्लीनाथ जी :
- जन्म – 1358 ई.
- पिता – राव सलखा (मारवाड़ के राजा)
- माता – जाणीदे
- खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन फिरोजशाह तुगलक की सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
- प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर है।
- यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मंदिर है।
- गुरु – उगमसी भाटी (पत्नी रूपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने)
बाबा तल्लीनाथ :
- वास्तविक नाम – गोगादेव राठौड़
- मारवाड़ के राजा विरमदेव के पुत्र तथा मंडोर के राजा राव चुंडा राठौड़ के भाई
- तल्लीनाथ जी ने शेरगढ़ पर राज किया।
- जहरीला जानवर काटने पर तल्लीनाथ जी की पूजा की जाती है
- तल्लीनाथ जी ओरण (धार्मिक मान्यता से पशुओं के चरने के लिए जो स्थान रिक्त छोड़ा जाता है) के देवता के रूप में प्रसिद्ध है।
- भारत की पहली ओरण पंचायत – ढोंक गाँव (चौहटन, बाड़मेर) है , जहाँ पर विरात्रा माता का मंदिर है।
- जालौर के प्रसिद्ध लोक देवता
- जालौर जिले के पांचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी, के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है।
मामा देव :
- वर्षा के देवता
- मामा देव का कोई मंदिर नहीं है और न ही कोई मूर्ति होती है।
- गाँव के बाहर लकड़ी के तोरण के रूप में मामा देव पूजे जाते है।
भोमिया जी :
- गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध
केसरिया कुंवरजी
:
- लोकदेवता गोगाजी के पुत्र
- इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते है
पनराजजी :
- जन्म – नगा गाँव (जैसलमेर)
- मुस्लिम लुटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायों को छुड़ाते हुए शहीद
हरिराम बाबा :
- झोरड़ा (नागौर) में इनका पूजा स्थल
- गुरु – भूरा
- इन्होने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्तियों को ठीक करने का मंत्र सिखा
डूंगजी – जवाहर
जी :
- सीकर जिले के लूटेरे लोकदेवता जो धनवानों व अंग्रजों के धन लूटकर गरीबों में बांटते थे व 1857 की क्रांति में सक्रीय भाग लिया।
वीर बिग्गाजी :
- जन्म – जांगल प्रदेश
- पिता – राव मोहन
- माता – सुल्तानी देवी
- बीकानेर के जाखड़ समाज के कुल देवता
- मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा की
बाबा झूंझारजी :
- जन्म – इमलोहा गाँव (सीकर)
- भगवान राम के जन्म दिवस रामनवमी को स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मेला भरता है।
वीर फत्ताजी :
- जन्म – साथूँ गाँव (जालौर)
- गाँव पर लुटेरों के आक्रमण के समय इन्होने भीषण युद्ध किया
- इनकी याद में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला भरता है।
Sabhi lokdevtao ke avatar
ReplyDeleteSupar
ReplyDelete